आचार्य श्रीराम शर्मा >> अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रहश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन मूल्यों को स्थापित करने के लिए अन्त्याक्षरी पद्य-संग्रह
(ल)
लंबा मारग दूरि घर, विकट पंथ बहु मार।
कहौ संतो क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि दीदार।।
लक्ष्य पाने के लिए, तुमको सतत चलना पड़ेगा।
मेटने घन तिमिर रवि की, गोद में पलना पड़ेगा।।
लखि सतीत्व अपमान हूँ, भये न जे दृगलाल।
नीबू नौन निचोरिये, छेदि फोरिये हाल॥
लखै अघानो भूख में, लखै जीत में हारि।
तुलसी सुमति सराहिए, मग पग धरे बिचारि॥
लव निमेष परमानु जुग, बरष कलप सरचंड।
भजसि न मन तेहि राम कहँ, काल जासु कोदंड॥
लहरायेगी नई फसल इस नवयुग की बरसात से।
और सुनो! यह फसल बढ़ायेंगे हम अपने हाथ से॥
लहै न फूटी कोडिहू, को चाहे, केहि काज।
सो तुलसी, मँहगो कियो, राम गरीब निवाज॥
लाई लावनहार की, जाकी लाई पर जरे।
बलिहारी लावनहार की, छप्पर बाँचे घर जरे॥
लाखों घर बरबाद हो गये, इस दहेज की बोली में।
अर्थी चढ़ी हजारों कन्या, बैठ न पायीं डोली में॥
लाभ समय को पालिबो, हानि समय की चूक।
सदाबिचारहि चारुमति, सुदिन कुदिन दिन टूक।।
लालच हू ऐसा भला, जासों पूरे आस।
चारहुँ कहुँ ओस के, मिटे काहु की प्यास।।
लूटि सके तो लूटियौ राम-नाम है लूटि।
पीछै हो पछिताहुगे, यहु तन जैहे छूटि॥
लेखा देणां सोहरा, जे दिल साँचा होई।
उस चंगे दीवान में, पला न पकडै कोई॥
लोक रीति फूटी सहै, आँजी सहै न कोई।
तुलसी जो आँजी सहै, सो आँधरो न होई॥
लोग भरोसे कौन के, बैठ रहे अरगाय।
ऐसे जियरहि जम लुटे, जस मटिया लुटे कसाय॥
लोपे कोपे इन्द्र लौं, रोवे प्रलय अकाल।
गिरधारी राखे सबै, गौ गोपी गोपाल।।
लोभे जन्म गँमाइया, पापे खाया पून।
साधी सो आधी कहैं, तापर मेरा खून॥
लोहा केरी नावरी, पाहन गरुवा भार।
शिर पर विष की मोटरी, चाहै उतरा पार॥
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